तंत्रिका एंव अंतःस्त्रावी तंत्र (Nervous and endocrine system)
मनुष्य के विभिन्न अंग आपस में एक दूसरे के परस्पर सहयोग तथा समन्वय के साथ कार्य करते हैं। यह तारतम्य अंगों तथा अंग तन्त्रों की क्रियाओं के लिए परमावश्यक है। कोई भी अंग तंत्र स्वतन्त्र रूप से यथा योग्य कार्य नहीं कर
सकता। अंग तन्त्रों के आपस में समन्वय हेतू शरीर में विशेष तन्त्र कार्य करता है जिसे तन्त्रिका तन्त्र कहा जाता है। विभिन्न तन्त्रों में समन्वय को बेहतर ढंग से स्थापित
करने हेतु मानव शरीर में एक अन्य तन्त्र जिसे अन्तःस्त्रावी तन्त्र कहा जाता है, कार्य करता है। तंत्रिका तंत्र सभी कोशिकाओं के कार्यों का नियंत्रण नहीं कर सकता। ऐसे में कुछ कार्य अन्तस्त्रावी तंत्र द्वारा सम्पादित किया जाता है। अन्तस्त्रावी तन्त्र में कई नलिकाविहीन ग्रन्थियों हार्मोन स्वावित करती है। ये हार्मोन, एक संदेश वाहक का कार्य करते हैं तथा विभिन्न अंगों के क्रिया-कलापों को नियन्त्रित करते हैं। उपरोक्त दोनों तन्त्र वातावरण के अनुसार प्राप्त जानकारी व संवेदनाओं को विभिन्न अंगो तक पहुँचाने, प्रतिक्रिया करने तथा विभिन्न अगों के मध्य सामंजस्य बैठाने का कार्य करते हैं।
मानव का तंत्रिका तन्त्र (Human nervous system)
मानव तंत्रिका तन्त्र एक ऐसा तंत्र है जो अगों व वातावरण के मध्य तथा विभिन्न अंगो के मध्य सामंजस्य स्थापित करता
है साथ ही विभिन्न अंगों के कार्यों को नियंत्रित करता है।
तंत्रिका तन्त्र दो भागों में विभाजित किया जाता है- (क) केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र (Central nervous system) (ख) परिधीय तंत्रिका तन्त्र (Peripheral nervous system) केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र में मुख्य रूप से मस्तिष्क, मेरू रज्जू तथा इसमें निकलने वाली तंत्रिका कोशिकाएँ शामिल होती है। परुितीय तत्रिका तन्त्र दो प्रकार की तत्रिकाओं से मिलकर बना है-
(i) संवेदी या अभिवाही (Sensory nerves): ऐसी तत्रिकाएँ जो उदीपनों (Stimulus) को ऊतको व अंगो से केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र तक लाती है।
(ii) प्रेरक या अपवाही (Motor nerve)
ये ऐसी तंत्रिकाएँ है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से नियामक उद्दीपनों (Regulatory stimulus) को सबंधित अंगों तक पहुँचाती है। कार्यात्मक रूप से परिधीय तंत्रिका तन्त्र को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
(i) कायिक तत्रिका तन्त्र (Somatic nervous system) तथा
(ii) स्वायत तंत्रिका तन्त्र (Antonomomic nervous system)
केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र (Central nervous system)
मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा उनसे निकलने वाली तत्रिकाए मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र का निर्माण करते है
(A) मस्तिष्क (Brain)
मानव मस्तिष्क शरीर का एक केन्द्रीय अंग है जो सूचना विनिमय तथा आदेश व नियंत्रण का कार्य करता है। शरीर के विभिन्न कार्य कलापों जैसे तापमान नियंत्रण, मानव व्यवहार रुधिर परिसंरण, श्वसन, देखने, सुनने, बोलने, ग्रन्थियों के स्त्रावण आदि को नियंत्रित करता है। यह करीब 1.5 किलो वजन का शरीर का सर्वाधिक जटिल अंग है जो खोपड़ी के द्वारा सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क के आवरण के बीच एक खाँच की तरह का द्रव्य जिसे मस्तिष्क मेरुद्रव्य कहते है पाया जाता है। मस्तिष्क तीन भागों में विभक्त होता है
अग्र मस्तिष्क (Fore brain), मध्य मस्तिष्क (Mid brain) व पश्च मस्तिष्क (Hind brain)
(i) अग्र मस्तिष्क (Fore brain)
प्रमस्तिष्क (Cerebrum), थेलेमस तथा हाइपोथेलेमस
मिलकर अग्र मस्तिष्क का निर्माण करते है। प्रमस्तिष्क मानव
मस्तिष्क का 80-85 प्रतिशत भाग बनाता है। यह मस्तिष्क का वह भाग है जहाँ से ज्ञान, चेतना, सोचने-विचारने का कार्य संपादित होता है। एक लम्बा गहरा विदर प्रमस्तिष्क को दाएँ व बाए गोलार्द्धा (Cerebral hemisphere) में विभक्त करता है।
प्रत्येक गोलार्द्ध में घूसर द्रव्य (Grey matter) पाया जाता है जो प्रान्तस्था या वल्कुट या कोर्टेक्स (Cortex) कहलाता है। अन्दर की ओर श्वेत द्रव्य (White matter) से बना हुआ भाग अन्तस्था या मध्याश (Medudla) कहा जाता है। घूसर द्रव्य (Grey matter) में कई तंत्रिकाएँ पाई जाती है। इनकी अधिकता के कारण ही इस द्रव्य का रंग घूसर दिखाई देता है। दोनों गोलार्द्ध आपस में कार्पस कैलोसम की पट्टी द्वारा जुड़े होते हैं। प्रमस्तिष्क चारों ओर से थेलेमस से घिरा हुआ रहता है। थेलेमस सवेदी व प्रेरक संकेतो का केन्द्र है। अग्र मस्तिष्क के डाइएनसीफलॉन (Diencephanol) नाग (जो कि थेलेमस के आधार पर स्थित होता है) पर हाइपोथेलेमस (Hy- pothalamus) स्थित होता है। यह भाग भूख, प्यास, निद्रा, ताप, थकान् मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति आदि का ज्ञान करवाता है।
(ii) मध्य मस्तिष्क (Mid brain)
यह चार पिण्डों में बंटा हुआ भाग है जो हाइपोथेलेमस तथा
पश्च मस्तिष्क के मध्य स्थित होता है।
प्रत्येक पिण्ड को कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन (Corpora quadrigemina) कहा जाता है। ऊपरी दो पिण्ड दृष्टि के लिए तथा निचले दो पिण्ड श्रवण के लिए उत्तरदायी है।
(iii) पश्च मस्तिष्क (Hind brain)
यह भाग अनुमस्तिष्क (Cerebellum), पॉस (Pons) तथा मध्यांश (Medulla oblongata) को समाहित करता है। अनुमस्तिष्क मस्तिष्क का दूसरा बड़ा भाग है जो एच्छिक पेशियों (जैसे हाथ व पैर की पेशियाँ) को नियंत्रित करता है। यह एक विलगित सतह वाला भाग है जो न्यूरॉस को अतिरिक्त स्थान प्रदान करता है। पॉस मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोडता है। मध्यांश अनैच्छिक क्रियाओं को नियत्रित करता है जैसे हृदय की घड़कन, रक्तदाब, पाचक रसों का स्त्राव आदि। यह मस्तिष्क का अन्तिम भाग है जो मेरूरज्जु से जुड़ा होता है।
B) मेरुरज्जु (Spinal cord)
मेरुरज्जु लगभग 5 से.मी. लम्बी होती है। यह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है। पश्च मस्तिष्क मध्यांश के जरिए मेरुरज्जु से जुड़ा होता है। मेक्रूरज्जु एक तन्त्रिकीय नाल है जो कशेरूकाओं (Vertebra) के मध्य एक तन्त्रिकीय नाल है जो सुरक्षित रहता है। उसके मध्य भाग में एक संकरी केन्द्रीय नाल होती है जिसे दो स्तर की मोटी दीवार घेरे हुए होती है- भीतरी स्तर को घूसर द्रव्य (Grey Matter) तथा बाहरी स्तर को श्वेत द्रव्य (White matter) कहा जाता है। घूसर दव्य मेरुरज्जु के भीतर उसके प्रारम्भ से अन्त तक एक लम्बे स्तंभ के रूप में स्थित होता है।
मेरुरज्जु मुख्यतः प्रतिवर्ती क्रियाओं के संचालन एवं नियमन करने का कार्य करती है साथ ही मस्तिष्क से प्राप्त तथा मष्तिष्क को जाने वाले आवेगों के लिए पथ प्रदान करता है।
परिधीय तंत्रिका तन्त्र(Peripheral nervous system)
यह मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु से निकलने वाली तत्रिकाओं का समुह है जो केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र को जाने व वहीं से आने वाले संदेशों को पहुँचाने का कार्य करता है। यह तन्त्र केन्द्रीय तन्त्र के बाहर कार्य करता है अतः इसे परिधीय तन्त्र कहा जाता है। यह मूलतः दो प्रकार का होता है-
(A) कायिक तंत्रिका तन्त्र (Somatic nervous system)
यह तन्त्र उन क्रियाओं को संपादित करने में मदद करता है जो हम अपनी इच्छानुसार करते हैं। केन्द्रीय तन्त्र इस तन्त्र के सहारे ही बाह्य उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया तथा मांसपेशियों आदि के कार्य संपादित करवाता है।
(B) स्वायत्त तंत्रिका तन्त्र (Autonomic nervous system)
यह तन्त्र उन अंगों की क्रियाओं का संचालन करता है जो व्यक्ति की इच्छा से नहीं वरन् स्वतः ही कार्य करते हैं जैसे हृदय, फेफड़ा, अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियाँ आदि। यह तन्त्र तंत्रिका के समूहों की एक श्रृंखला होती है जिससे शरीर के विभिन्न आन्तरिक अंगो के तत्रिका तन्तु (Nerve fibers) जुड़े होते हैं। स्वायत तंत्रिका तन्त्र को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Sympathetic nervous system)
यह तन्त्र व्यक्ति में सतर्कता तथा उत्तेजना को नियंत्रित करता है। यह तन्त्र व्यक्ति के शरीर को आपातकालीन परिस्थिति में अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है। आपातकालीन स्थिति में हृदय गति का तेज होना, श्वास गति का बढ़ना आदि क्रियाएँ अनुकम्पी तन्त्र के द्वारा ही संपादित की जाती हैं।
(ii) परानुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Parasympathetic nervous system)
यह तन्त्र शारीरिक ऊर्जा का संचयन करता है।
विश्रामावस्था में यह तन्त्र क्रियाशील होकर ऊर्जा का संचय प्रांरभ करता है। यह आँख की पुतली को सिकोड़ता है तथा लार व पाचक रसों में वृद्धि करता है।
तंत्रिकोशिका (न्यूरॉन)
तंत्रिकोशिका या तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र की सरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है जिसके द्वारा यह तन्त्र शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक संकेत भेजता है। ये कोशिकाएँ शरीर के लगभग हर ऊतक/अंगों को केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र से जोड़कर रखती है।
तत्रिका कोशिकाएँ शरीर के बाहर से अथवा भीतर से उददीपनों (Stimuli) को ग्रहण करती है। आवेगों (संकेतो) के माध्यम से उद्दीपन एक से दूसरी तंत्रिका कोशिका में अभिगमन करते हुए केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र तक पहुँचते हैं।
केन्द्रीय तन्त्र से प्राप्त प्रतिक्रियात्मक संदेशों को वापस पहुँचाने का कार्य भी तंत्रिका कोशिका के माध्यम से ही संपादित होता है। प्रत्येक तत्रिका कोशिका तीन भागों में मिल कर बनी होती है
(i) कोशिका काय (Cell body):
इस भाग को साइटोन (Cytone) भी कहा जाता है। कोशिका काय में एक केन्द्रक तथा प्रारूपिक कोशिकांग पाए जाते हैं
कोशिका द्रव्य में अभिलक्षणिक अति-अभिरंजित निसेल ग्रेन्यूल (Nissl's Granules) पाए जाते है।
(ii) दुमाक्ष्य (Dendron):
ये कोशिका काय से निकले छोटे तन्तु होते हैं। जो कोशिका काय की शाखाओं के तौर पर पाये जाते है। ये तन्तु उददीपनों को कोशिका काय की ओर भेजते है।
(iii) तंत्रिकाक्ष (Axon)
यह लम्बा बेलनाकार प्रवर्ध है जो कोशिका काय के एक हिस्से से शुरू होकर धागेनुमा शाखाएँ बनाता है। तंत्रिकाक्ष की प्रत्येक शाखा एक स्थूल संरचना का निर्माण करती है जिसे अवग्रथनी घुण्डी या सिनैष्टिक नोब (Synaptic konb) कहा जाता है।
सिनैप्टिक नोब में सिनैप्टिक पुटिकाएँ पाई जाती है। सिनैप्टिक पुटिकाओं में न्यूरोट्रांसमीटर नामक पदार्थ पाए जाते हैं जो तंत्रिका आवेगों के सम्प्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाले हैं। तंत्रिकाक्ष के माध्यम से आवेग न्यूरोन से बाहर निकलते हैं। एक न्यूरोन के द्रुमाक्ष्य के दूसरे न्यूरोन के तंत्रिकाक्ष से मिलने के स्थान को सन्धि स्थल (Synapse) कहा जाता है।
तंत्रिका तन्त्र की कार्यिकी (Physiology of nervous system)
कई तंत्रिकाएँ मिलकर कडीनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों को मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के साथ जोड़ता है। संवेदी तंत्रिकाएँ बहुत से उदीपनों को जैसे आवाज, रोशनी, स्पर्श आदि पर प्रतिक्रिया करते हुए इन्हें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचाती हैं। यह कार्य वैद्युत-रासायनिक आवेग (Electro chemical impulse) के जरिए संपादित किया जाता है। इसे तंत्रिका आवेग भी कहा जाता है। यह तत्रिका आवेग ही उद्दीपनों को संवेदी अंगों (त्वचा, जीभ, नाक, आँखे तथा कान) से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक प्रसारित करते हैं। तत्रिका आवेग दुमाक्ष्य से तत्रिकाक्ष तक पहुँचते-पहुँचते कमजोर पड़ जाते है। ऐसे शिथिल आवेगों को सन्धि स्थल पर अधिक शाक्तिशाली बनाकर आगे भेजने का कार्य न्यूरोट्रांसमीटर द्वारा संपादित होता है। केन्द्रीय तन्त्र से संचारित संकेत जो चालक तत्रिकाओं द्वारा प्रसारित होते हैं, व मांसपेशियों तथा ग्रन्थियों को सक्रिय करते है।
अंतः स्त्रावी तंत्र (Endocrine system)
अंतः स्त्रावी तंत्र एक ऐसा तंत्र है जो तंत्रिका तंत्र के साथ मिल कर शरीर की कोशिकीय क्रियाओं में समन्वय स्थापित करता है। तंत्रिका तंत्र सम्पूर्ण कोशिकीय क्रियाओं का लम्बी अवधि के लिए तंत्रिकायन नहीं कर पाता। अतः दीर्घ अवधि के निरंतर नियमन हेतु शरीर को अंतःस्त्रावी तंत्र द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन की आवश्यकता होती है। अंतःस्त्रावी तंत्र अंतः स्त्रावी गन्धियों (Endocrine glands) के माध्यम से कार्य करता है। ऐसी ग्रन्थियाँ नलिकाविहीन (Ductless) होती है तथा अपने उत्पाद (हॉर्मोन) को सीधे रक्त धारा में स्त्रावित करती हैं।
हमारे शरीर में कुछ ऐसी ग्रन्थियाँ भी पाई जाती है जो अंतःस्त्रावी होने के साथ-साथ बहिः स्त्रावी भी होती है। उदाहरणार्थ अग्न्याशय अंतः स्त्रावी ग्रन्थि के रूप में इन्सुलिन (Insulin) तथा ग्लूकैगीन (Glucogon) तथा बहिः स्त्रावी ग्रन्थि के रूप में पाचक एंजाइम स्त्रावित करता है। वृषण एवं अण्डाशय भी इस ही प्रकार की ग्रन्थियाँ हैं।
अंतः स्त्रावी ग्रन्थियां हॉर्मोन स्त्रावित करने के अलावा उनको संगृहीत तथा निर्मुक्त करने का कार्य भी करती है। मानव शरीर में उपस्थित विभिन्न अंत स्त्रावी ग्रन्थियाँ हैं- हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland), पिनियल ग्रन्थि (Pineal gland), थाइरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland), पैराथाइराइड ग्रन्थि (Parathyroid gland). अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland), अग्न्याशय (Pancreas), थाइमस (Thymus), वृषण (Testes), अण्डाशय (Ovaries) इत्यादि। इन के अतिरिक्त कुछ अन्य अंग जैसे यकृत, वृक्क, हृदय आदि भी हार्मोन का स्त्रावण करते है।
अंतः स्त्रावी तंत्र के द्वारा जो नियंत्रण स्थापित किया जाता है उसमें हाइपोथैलेमस सर्वाधिक महत्पूर्ण भूमिका निभाती है। हाइपोथेलेमस मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों से सूचना एकत्रित कर इन सूचनाओं को विभिन्न स्त्रावों तथा तत्रिकाओं द्वारा पीयूष ग्रन्धि तक पहुंचाती है।
पीयूष ग्रन्थि इन सूचनाओं के आधार पर अपने विभिन्न स्त्रावणों की सहायता से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अन्य अंतः स्त्रावी ग्रन्थियों की क्रियाओं को नियंत्रित करती है। ये ग्रन्थियाँ पीयूष ग्रन्थि के निर्देशानुसार भिन्न-भिन्न हार्मोन का स्त्रावण करती है। ये स्त्रावित हार्मोन मानव शरीर में अनेको कार्य जैसे वृद्धि, उपापचयी क्रियाएँ आदि संपादित तथा नियंत्रित करते है। हार्मोन लक्ष्य उत्तकों पर उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन से जुड़कर अपना प्रभाव डालते है।
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