भारतीय वैज्ञानिक का जीवन परिचय और उनकी उपलब्धियां

डा.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (Dr. A.P.J. Abdul Kalam)



डॉ. अबुल पकिर जैनुलासबदीन अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम् जिले में धनुष कोडी कस्बे में 15 अक्टूबर 1991 को हुआ। उनको पिता का नाम जैनुलाअबदीन व माता का तान आशियम्मा था। रामेश्वरन् मैं प्राथमिक शिक्षा के बाद कलाम पड़ौसी कस्बे रामनाथपुरम् के खार्टज हाई स्कूल में विज्ञान का अध्ययन करने हेतु दाखिल हुए। अमा हुरै सोलोमन उनके प्रेरण स्त्रोत बने। सोलोमन का गुरुमंत्र: जीवन में सफलता पाने के लिए तीन मुख्य बातों की जरूरत है- इच्छा शक्ति, आस्था व उम्मीद, कलाम के जीवन का आधार बना।

डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम


1954 में एयरोनोटिकल इंजीनियरिंग हेतु मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी में दाखिल हुए। 1958 में कलाम स्था अनुसंधान व विज्ञान संगठन में हावर क्रॉफ्ट परियोजना पर काम करने हेतु वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में नियुक्त हुए। 1962 में प्रो. एम.जी. मेनन कलाम की लगन व मेहनत से प्रभावित होकर उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में ले गए जहाँ कलाम के जीवन का स्वर्णिम अध्याय का सुनहरा आगाज हुआ।

कलाम ने नासा से राकेट प्रक्षेपण की तकनीकी का प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा भारत का पहला रॉकेट "नाईक अपाचे" छोड़ा। इन्हें SLV परियोजना का प्रबंधक बनाया तथा इनके नेतृत्व में SLV-3 ने सफल उड़ान भरी जिसने रोहिणी उफ्ग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। कलाम ने महत्वपूर्ण मिसाइल कार्यक्रम समन्वित निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम 1983 के राहत पृथ्वी' अग्नि, त्रिशूल, नाग व आकाश नामक मिसाइलों का बिकास व प्रथोपण किया। 1958 में पोकरण में किए गये परमाणु परीक्षण का नेतृत्व किया। मिसाइलों में महत्वपूर्ण योगदान के कारण इन्हें मिसाईल मेन भी कहा जाता है।

डॉ. कलाम ने 20002-2007 तक नारत के राष्ट्रपति के रूप में सर्वोच्च संवैधानिक पद को सुशोभित किया। भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण (1981) पद्म विभूषण (1990) तथा भारत रत्न (1997) जैसे महत्वपूर्ण पुरूस्कारों से सम्मानित किया 27 जुलाई 2015 को IIM शिलांग में भाषण देते हुए

इनकी हृदय गति एक जाने से इनका निधन हो गया जो भारत के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व समुदाय के लिए अपूर्णीय क्षति है।


सी.वी. रमन (C.V. Raman)

चन्द्र शेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवम्बर 1888 तमिलनाडु के तिरुधिर पतली शहर में हुआ। उनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर तथा माता पार्वती अम्मल थी। उनके पिता विशालापत्तनम के बाल्टेयर कॉलेज में भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक थे। रमन ने वाल्टेयर कॉलेज से इन्टर परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। 1907 में 19 वर्ष की आयु में भौतिक विज्ञान में एम.एस.सी. परीक्षा उत्तीर्ण की।

19 वर्ष की आयु में अर्थ दिमाग की प्रतियोगिता परीक्षा दी। भौतिक विज्ञान के छात्र होते हुए भी प्रतियोगिता परीक्षा जिसमें साहित्य, इतिहास, संस्कृत व राजनीति शास्त्र जैसे विषय थे में चयनित हुए। भारत सरकार द्वारा अर्थ विभान के उपमहालेखापाल नियुक्त किए गए।

रमन ने बीणा, मुंबग, तानपुरा आदि भारतीय याद्ययन्त्रों तथा वायलिन, पियानों आदि विदेशी यंत्रों के ध्वनिक गुणों की खोज कर भौतिक सिद्धान्त प्रतिपादित किए। राजकीय सेवा में रहते हुए विज्ञान हेतु पर्याप्त समय न

मिलने के कारण 1917 में रमन ने बाकतार विभाग के महालेखापाल पद से त्याग पत्र दे दिया। वे कलकत्ता विश्व विद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर बने। इस पद पर रहते हुए रमन ने अपने विश्व प्रसिद्ध रमन प्रमाव' की खोज की. जो उन्होंने 1928 में पूर्ण किया। रमन प्रभाव की खोज पर 1930 में उन्हें नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया। दमन प्रभाव' को 'रमन प्रकीर्णन भी कहा जाता है। इसके अनुसार 'जब प्रकाश द्रव माध्यम से गुजरता है तो प्रकाश व द्रव में अनाः क्रिया होती है जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है। रमन प्रभाव खोज की विशेष बात यह थी कि केवल दो सौ रुपये के उपकरणों एवं ना के बराबर सुविधाओं के साथ रमन ने यह खोज की।

भारत सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 1949 में राष्ट्रीय प्रध्यापक नियुक्त किया गया। 1954 में उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया। उनके इन वैज्ञानिक शान्तिपूर्ण कार्यों द्वारा राष्ट्रो के मध्य मैत्री विकसित करने हेतु लेनिन शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया।

रमन ने समुद्र व आकाश का रंग नीला होने के कारण बताया तथा ठोस, द्रव व गैस का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने चुम्बकीय शक्ति, एक्स किरणें, पदार्थ की संरचना, वर्ण व ध्वनि पर वैज्ञानिक अनुसंधान किये। 20 नवम्बर 1970 में इनकी मृत्यु हो गई। उनके सम्मान व चमन प्रभाव की खोज के उपलक्ष में हर वर्ष 28 फरवरी को विज्ञान दिवस मनाया जाता है।

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