राजस्थान का एकीकरण
राजस्थान का एकीकरण भारतीय राजनीति और इतिहास का महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। राजस्थान का एकीकरण 30 मार्च 1949 को हुआ, जब राजपूताना, मेवाड़, मारवाड़, और बीकानेर रियासतें एक होकर राजस्थान नामक एक नए राज्य का निर्माण करने के लिए समर्थन करने के लिए साकर बैठे थे।
राजस्थान का एकीकरण ब्रिटिश शासन के समाप्त होने के बाद, भारतीय संघ के तत्वों ने विभाजित रियासतों को एक सामंजस्यपूर्ण और सामूहिक राज्य में समाहित करने की आवश्यकता को समझा। इससे राजस्थान नामक एक विशाल राज्य का निर्माण हुआ, जो अपने समृद्धि, सांस्कृतिक धरोहर, और ऐतिहासिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है।
राजस्थान का एकीकरण भारतीय इतिहास में कई चरणों में हुआ था। यह चरण इस प्रकार थे:
1.प्रथम चरण - मत्स्य संघ (18 मार्च 1948):
मत्स्य संघ के पहले चरण के दौरान, यह संघ भारतीय रियासतों को एकीकृत करने का प्रयास किया। इसमें सम्मिलित रियासतों की सूची में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, और नीमराना ठिकाना शामिल थीं। राजधानी अलवर बनी और इसके उद्घाटनकर्ता एन. वी. गाडगिल थे। प्रधानमंत्री शोभाराम कुमावत अलवर से थे और राजप्रमुख उदयभान सिंह धौलपुर के शासक थे। इस संघ के नामकरण का कारण के. एम्. मुंशी रहे।
- सम्मिलित रियासतें: अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, नीमराना ठिकाना
- राजधानी: अलवर
- उद्घाटनकर्ता: एन. वी. गाडगिल
- प्रधानमंत्री: शोभाराम कुमावत (अलवर से)
- राजप्रमुख: उदयभान सिंह (धौलपुर शासक)
- नामकरण: के. एम्. मुंशी
2. द्वितीय चरण - पूर्व राजस्थान संघ (25 मार्च 1948):
पूर्व राजस्थान संघ के द्वितीय चरण में, सम्मिलित रियासतों ने एक साथ मिलकर एक सामूहिक प्रणाली बनाई। इस संघ में शामिल रियासतों में टोंक (लावा), बूंदी, कोटा, झालावाड़, शाहगढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, और बांसवाड़ा (कुशलगढ़ ठिकाना) शामिल थीं। इसकी राजधानी जयपुर बनी और इसके उद्घाटनकर्ता एन. वी. गाडगिल थे। प्रधानमंत्री गोकुल लाल ओसवा शाहपुरा से थे, राजप्रमुख भीम सिंह कोटा से थे, और उपराजप्रमुख बहादुरसिंह बूंदी से थे। इस संघ का उद्दीपन भारतीय राजनीतिक सीने में महत्वपूर्ण था, जिसने पूर्व राजस्थान क्षेत्र को एकजुट किया।
- सम्मिलित रियासतें: टोंक (लावा), बूंदी, कोटा, झालावाड़, शाहगढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा (कुशलगढ़ ठिकाना)
- राजधानी: जयपुर
- उद्घाटनकर्ता: एन. वी. गाडगिल
- प्रधानमंत्री: गोकुल लाल ओसवा (शाहपुरा)
- राजप्रमुख: भीम सिंह (कोटा)
- उपराजप्रमुख: बहादुरसिंह (बूंदी)
3. तृतीय चरण - संयुक्त राजस्थान (18 अप्रैल 1948):
तृतीय चरण में भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण घटना हुई जब संयुक्त राजस्थान की स्थापना हुई। इस चरण में उदयपुर रियासत को सम्मिलित किया गया, जिसमें पं. जवाहर लाल नेहरु द्वारा उद्घाटन किया गया। राजधानी को उदयपुर बनाया गया और प्रधानमंत्री माणिक्यलाल वर्मा उदयपुर से थे। राजप्रमुख भूपाल सिंह भी उदयपुर से थे और उपराजप्रमुख भीम सिंह कोटा से थे।
- सम्मिलित रियासत: उदयपुर रियासत
- राजधानी: उदयपुर
- उद्घाटनकर्ता: पं. जवाहर लाल नेहरु
- प्रधानमंत्री: माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)
- राजप्रमुख: भूपाल सिंह (उदयपुर)
- उपराजप्रमुख: भीम सिंह (कोटा)
4. चतुर्थ चरण - वृहत राजस्थान (30 मार्च 1949):
वृहत राजस्थान का संघटन:
इस चरण में, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, और बीकानेर रियासतें एक हो गईं। राजधानी को जयपुर बनाया गया और इसके उद्घाटनकर्ता सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री जयपुर से थे, महाराजप्रमुख भूपाल सिंह उदयपुर से थे, राजप्रमुख मानसिंह दितीय जयपुर से थे, और उपराजप्रमुख भीम सिंह कोटा से थे।
वृहत राजस्थान का महत्व:
वृहत राजस्थान ने भारतीय संघटन को एकमेक से जोड़ा और राजस्थान क्षेत्र की एक बड़ी एकता को प्रमोट किया।
- सम्मिलित रियासतें: जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर रियासतें
- राजधानी: जयपुर
- उद्घाटनकर्ता: सरदार वल्लभ भाई पटेल
- प्रधानमंत्री: हीरालाल शास्त्री (जयपुर)
- महाराजप्रमुख: भूपाल सिंह (उदयपुर)
- राजप्रमुख: मानसिंह दितीय (जयपुर)
- उपराजप्रमुख: भीम सिंह (कोटा)
5. चरण - संयुक्त वृहत राजस्थान (15 मई 1949):
- सम्मिपंचमलित रियासतें: वृहद राजस्थान और मत्स्य संघ
- राजधानी: जयपुर
- सम्मलित रियासतें: वृहद राजस्थान और मत्स्य संघ
- प्रथम मुख्यमंत्री: हीरा लाल शास्त्री
- राजप्रमुख: मानसिंह दितीय (जयपुर)
संयुक्त वृहत राजस्थान का संघटन:
इस चरण में, वृहद राजस्थान और मत्स्य संघ को सम्मिलित किया गया। राजधानी को जयपुर बनाए रखा गया। प्रथम मुख्यमंत्री हीरा लाल शास्त्री बने और राजप्रमुख का पद मानसिंह दितीय ने संभाला।
संयुक्त वृहत राजस्थान का महत्व:
यह चरण राजस्थान के क्षेत्र की समृद्धि और एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रोल निभाया। इसके बाद राजस्थान को संयुक्त रूप से प्रबंधित किया गया और उसके राजनीतिक और सामाजिक विकास में एक साथी भूमिका मिली।
6. षष्ठम चरण - राजस्थान संघ (26 जनवरी 1950):
- सम्मिलित रियासतें: संयुक्त वृहत राजस्थान एवं सिरोही राजस्थान
- राजधानी: जयपुर
- मुख्यमंत्री: हीरा लाल शास्त्री
- राजप्रमुख: मानसिंह दितीय (जयपुर)
राजस्थान संघ का संघटन:
इस चरण में, संयुक्त वृहत राजस्थान और सिरोही राजस्थान को सम्मिलित किया गया। राजधानी को जयपुर ही बनाए रखा गया और मुख्यमंत्री के रूप में हीरा लाल शास्त्री का चयन हुआ। राजप्रमुख का पद मानसिंह दितीय ने संभाला।
राजस्थान संघ का महत्व:
राजस्थान संघ का गठन 26 जनवरी 1950 को हुआ और इसने राजस्थान को एक संगठित और एकीकृत राज्य के रूप में स्थापित किया। इसके संघटन ने राजस्थान के राजनीतिक और सामाजिक स्वरूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।
7. सप्तम चरण - राजस्थान (1 नवम्बर 1956):
- सम्मिलित रियासतें: अजमेर-मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा व मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले का सुनील टप्पा गाँव राजस्थान में शामिल।
- राजधानी: जयपुर
- मुख्यमंत्री: मोहन लाल सुखाडिया
- प्रथम राज्यपाल: गुरुमुख निहालसिंह
राजस्थान राज्य का स्थापना:
1 नवम्बर 1956 को, राजस्थान ने एक स्वतंत्र राज्य के रूप में गठन किया। इसमें अजमेर-मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा, और मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले का भी शामिल होना राजस्थान को एक बड़े और विविध राज्य के रूप में स्थापित किया। मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाडिया और प्रथम राज्यपाल गुरुमुख निहालसिंह ने राज्य की नई शुरुआत की।
0 Comments