उत्सर्जन तन्त्र (Excretory system)
उत्सर्जन तत्र का अर्थ है शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने की व्यवस्था। अतः उत्सर्जन शरीर की यह व्यवस्था है जिसमें शरीर की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को बाहर निकाला जाता है।
कोई भी प्राणी उपापचयी क्रियाओं द्वारा अपशिष्ट पदार्थों जैसे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल, कार्बन डाइऑक्साइड आदि का संचय करता रहता है। इन अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन एक अत्यंत ही आवश्यक क्रिया है अन्यथा ये (विशेष रूप से नाइट्रोजनी अपशिष्ट) प्राणी शरीर में आविष के समान कार्य करते है। कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन फेफड़ो के माध्यम से होता है। संचित नाइट्रोजनी अपशिष्ट के उत्सर्जन हेतु एक विशेष तंत्र जिसे उत्सर्जन तंत्र कहा जाता है कार्य करता है। इस तंत्र में
वृक्क (Kidney) मुख्य भूमिका निभाते है। नाइट्रोजनी अपशिष्ट तीन प्रकार के होते है-
(अ) अमोनिया अमोनिया उत्सर्जन अमोनियोत्सर्ग प्रक्रिया (Ammonotelism) के द्वारा संपन्न किया जाता है।
अनेक अरिचल मछलियाँ, उभयचर तथा जलीय कीट इस प्रक्रिया द्वारा अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं। अमोनिया उत्सर्जन के लिए अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है।
(ब) यूरिया : मुख्यतः यूरिया उत्सर्जन स्तनधारी, समुद्री मछलियाँ आदि करते है। इन जीवो को यूरिया उत्सर्जी (Ureotelic) कहा जाता है। कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित अमोनिया को यकृत यूरिया में परिवर्तित करता है जिसे वृक्को द्वारा निस्पंदन कर उत्सर्जित कर दिया जाता है।
(स) यूरिक अम्ल पक्षियों, सरीसृपी, कीटों आदि में अमोनिया को यूरिक अम्ल में परिवर्तित कर यूरिक अम्ल का निर्माण किया जाता है। यूरिक अम्ल को अत्यंत कम जल के साथ गोलिकाओं अथवा पेस्ट के रूप में उत्सर्जित किया जाता है। ऐसे जीवों को यूरिक अम्ल उत्सती (Uricotelic) कहा जाता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र
मनुष्यों का उत्सर्जन तंत्र शरीर के तरल अपशिष्टों को एकत्र कर उनका निष्कासन करता है। इस तंत्र में दो वृक्क (Kidneys), एक मूत्राशय (Bladder), दो मूत्रवाहिनियाँ (Ureters) तथा एक मूत्र मार्ग (Urethera) होता है
वृक्क: यह मानव का मुख्य उत्सर्जन अंग है यह शरीर से करीब 75-80 प्रतिशत तरल अपशिष्टों को बाहर निकालता है, साथ ही शरीर में स्त्रावित समस्त रसों का नियंत्रण करता है। यह सेम के दानों की आकृति के गहरे भूरे रंग के होते है। ये उदरगुहा में पीठ की ओर आमाशय के नीचे कशेरूक दण्ड के दाएँ व बाएँ भाग में स्थित है। वृक्क की मध्य सतह पर एक रवांच होती है, जो हाइलम कहलाती है। मूत्र नलिका, तंत्रिकाएँ व रक्त वाहिनियाँ हाइल्स से होकर वृक्क में प्रवेश करती हैं। हाइलम के भीतरी भाग में कीप के आकार की वृक्कीय श्रोणि (Pelvis) पाई जाती हैं। प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं बाहरी वल्कुट (Cor- tex) तथा भीतरी मध्यांश (Medula)। प्रत्येक वृक्क कई लाख उत्सर्जन इकाइयों से मिलकर बना होता हैं जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहा जाता है प्रत्येक नेफ्रॉन के दो भाग होते हैं-
(a) बोमेन संपुट (Bowman's capsule) - यह नेफान के ऊपरी भाग में पाए जाने वाला कप के आकार का थैला होता है। बोमेन संपुट में शाखा अभिवाही धमनियों की कोशिकाओं का एक गुच्छा पाया जाता है। इन गुच्छों को ग्लोमेरूलस (Glomerulus) कहा जाता है। ग्लोमेरूलस का एक सिरा जो बोमेन संपुट में अपशिष्ट युक्त गंदा रक्त लाता है. वृक्क धमनी से जुड़ा होता है तथा द्वितीय हिस्सा स्वच्छ रक्त को ले जाने हेतु वृक्क शिरा से जुडा होता है।
(ब) वृक्क नलिका
यह बोमेन सपुंट के निचले हिस्से से प्रारंभ होने वाली नलिका है, जिसका दूसरा हिस्सा मूत्र एकत्र करने वाली नलिका से जुड़ा होता है मध्य भाग में यह नलिका हेयर पिननुमा कुडंलित हेनले लूप का निर्माण करती है।
मूत्र निर्माण
मूत्र का निर्माण तीन चरणों में संपादित होता है गुच्छीय निस्पंदन, पुनः अवशोषण तथ स्त्रवण। ये सभी कार्य वृक्क के विभिन्न हिस्सों में होते है। वृक्क में लगातार रक्त प्रवाहित होता रहता है। यह रक्त वृक्क धमनी के द्वारा लाया जाता है। यह रक्त अवशिष्ट पदार्थों से युक्त होता है। इस धमनी की शाखा अभिवाही धमनियाँ (Afferent arteriole) नेफोन में बोमेन संपुट में जाकर केशिकाओं के गुच्छ के तौर पर परिवर्तित होती है।
यहां रक्त का निस्पंदन कार्य पूर्ण किया जाता है। प्रति मिनट करीब 1000-1200 ml रक्त का निस्पंदन कार्य पूर्ण किया जाताहै। यहाँ रक्त में से ग्लूकोज, लवण, एमीनो अम्ल, यूरिया आदि तत्त्व निस्पंदित होकर बोमन सपुंट में एकत्र हो जाते है। यह निस्पंदन फिर वृक्क नलिका में से गुजरता है। वृक्क नलिका की दीवारे घनाकार उपकला (Epithelium) कोशिकाओं से बनी होती है। ये कोशिकाएँ निस्पंदन में से लगभग पूर्ण ग्लूकोज, अमीनों अम्ल तथा अन्य उपयोगी पदार्थों का पुनः अवशोषित कर लेती है। तत्पश्चात् इन पदार्थों को रक्त प्रवाह में पुनः प्रेषित कर दिया जाता है। करीब 99 प्रतिशत निस्पंदन वृक्क नलिकाओं द्वारा पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। नेफोन द्वारा पुनः अवशोषण पश्चात् साफ रक्त को अपवाही धमनिका (Efferent arteriole) संगृहीत करती है। पुनः अवशोषण किए जाने वाले पदार्थों में यूरिया जैसे अपशिष्ट पदार्थ शामिल नहीं होते। ये पदार्थ वृक्क नालिकाओं में ही रहते है। ऐसे अपशिष्ट युक्त तरल पदार्थ ही मूत्र निर्माण करते हैं। नेफान से मूत्र वृक्क की संग्रहण नलिका में ले जाया जाता है। जहाँ से मूत्र मूत्रनली में प्रवेश करता है। प्रत्येक वृक्क से एक मूत्रनली मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय वह अंग है जहां मूत्र को जमा किया जाता है। जैसे-जैसे मूत्र इकट्ठा होता है वैसे-वैसे मूत्राशय बड़ा होता रहता है। पर्याप्त मूत्र जमा होने पर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा ऐच्छिक संदेश मूत्राशय को प्राप्त होता है। ये संदेश मूत्राशय की पेशियों का संकुचन करता है तथा मूत्राशयी अवरोधिनी में शिधिलन पैदा करता है। इससे मूत्र का उत्सर्जन होता है। मूत्रण को संम्पन्न करने वाली तंत्रिका को मूत्रण प्रतिवर्त कहा जाता है। वृक्क द्वारा साफ किए गए रक्त को वृक्क शिरा ले कर जाती है।
उत्सर्जन में प्रयुक्त अन्य तंत्र
वृक्क के अलावा हमारे फेफड़े, त्वचा, यकृत आदि भी अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जित करने में मदद करते है। फेफड़े CO, का तथा यकृत बिलीरूबिन, बिलीविरडिन, विटामिन, स्टीरायेंड हार्मोन आदि का मल के साथ उत्सर्जन करने में मदद करता है। त्वचा नमक, यूरिया, लैक्टिक अम्ल आदि का पसीने के साथ तथा स्टेरोल, हाइड्रोकार्बन आदि का सीबम के साथ उत्सर्जन करती है।
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