भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध Major wars of Indian history
प्रत्येक एग्जाम में पूछे जाने वाले प्रश्न भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध
1526:- पानीपत का प्रथम युद्ध
पानीपत के प्रथम युद्ध (बाबर के और लोदी वंश के बीच) का संघटन 21 अप्रेल 1526 को हुआ था। यह युद्ध भारतीय इतिहास में विशेष महत्वपूर्ण है और इसे "पानीपत का प्रथम युद्ध" के नाम से जाना जाता है।
इस युद्ध के समय, बाबर ने लोदी साम्राज्य के सुलतान इब्राहीम लोदी के खिलाफ अपनी सेना के साथ मिलकर युद्ध किया। इस युद्ध में बाबर की ताकत और अद्वितीय युद्ध कला ने उन्हें जीत दिलाई और इसका परिणामस्वरूप लोदी वंश का समापन हो गया।
बाबर के इस विजय के बाद, उन्होंने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की, जिससे मुगल साम्राज्य का आरंभ हुआ। इसे पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद दिल्ली के सुलतानों के बीच लड़े गए युद्धों की पहली श्रृंगारी घटना माना जाता है।
1527 खानवा का युद्ध
खानवा का युद्ध 1527 में हुआ था और यह एक महत्वपूर्ण युद्ध था जो भारतीय इतिहास में बड़ा परिवर्तन लाया। इस युद्ध का संघटन दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी और बाबर, जो मुघल साम्राज्य के बादशाह बने, के बीच हुआ था।
खानवा का युद्ध बाबर के भारत आक्रमण के पहले वर्ष में हुआ था और इसमें बाबर की सेना और इब्राहीम लोदी की सेना के बीच संघर्ष हुआ। युद्ध का परिणाम था कि इब्राहीम लोदी की सेना हारी और इब्राहीम लोदी स्वयं भी युद्धक्षेत्र में मारे गए।
खानवा का युद्ध मुघल साम्राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण था और इसके बाद बाबर ने भारत में मुघल शासन की शुरुआत की। इसे पानीपत के तीसरे युद्धों में से एक माना जाता है, जिसमें मुघल साम्राज्य ने भारतीय साम्राज्यों के खिलाफ जीत हासिल की।
1529 घाघरा का युद्ध
मुगल साम्राज्य के बादशाह हमायूँ के और शेरशाह सूरी के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण युद्ध घाघरा का युद्ध (अंग्रेजी: Battle of Ghaghra) था, जो 6 मई 1529 को घाघरा नदी के किनारे, वर्तमान दिन के इंडियन स्टेट बिहार में लड़ा गया था। इस युद्ध में हमायूँ की सेना और शेरशाह सूरी की सेना के बीच एक बड़ा संघर्ष हुआ था।
घाघरा का युद्ध मुघल साम्राज्य के बने रहने के लिए महत्वपूर्ण था। इस युद्ध में हमायूँ की सेना ने शेरशाह सूरी को हराया और दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया। इससे मुघल साम्राज्य को दिल्ली में स्थायी रूप से स्थापित होने में मदद मिली।
घाघरा का युद्ध ने मुघल साम्राज्य के स्थापना को मजबूती से बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमायूँ को दिल्ली के बादशाह बनने का मौका दिया।
1539:- चौसा का युद्ध
चौसा का युद्ध 1539 में हुआ था और यह एक महत्वपूर्ण युद्ध था जो मुघल साम्राज्य के बादशाह हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच में लड़ा गया था। यह युद्ध चौसा नामक स्थान पर लड़ा गया था, जो अब वर्तमान बिहार राज्य, भारत में स्थित है।
चौसा के युद्ध का कारण था शेरशाह सूरी का मुघल साम्राज्य के बादशाह हुमायूँ के खिलाफ प्रतिष्ठान बनाने का इच्छुक होना। युद्ध के परिणामस्वरूप शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया और उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया।
चौसा का युद्ध मुघल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इसके बाद शेरशाह सूरी ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा किया और मुघल साम्राज्य को कुछ सालों के लिए बाहर निकाल दिया
1556:- पानीपत का द्वितीय युद्ध
पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवम्बर 1556 को हुआ था और यह मुघल सम्राट अकबर और हेम चंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ा गया था। इसे अकबर की सेना ने जीता और इससे अकबर का सिर्फ नहीं, बल्कि मुघल साम्राज्य का भी उत्ताराधिकार बना रहा।
पानीपत के द्वितीय युद्ध का कारण था अकबर की राजवंश की स्थापना को लेकर समस्याएं जो उसने सुलतानात-ए-हिन्द (हिन्दी सुलतानत) के साम्राज्य के स्थापना के बाद होना शुरू की थीं। हेम चंद्र विक्रमादित्य, दिल्ली सुलतान इस्लाम शाह सूर के पोते, ने अकबर के खिलाफ विरोध जताया और पानीपत के क्षेत्र में संघर्ष की कोशिश की।
पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद अकबर ने अपने बच्चे पनाह के साथ दिल्ली सुलतानत की स्थापना की और इसके बाद मुघल साम्राज्य का समापन नहीं हुआ।
18 जून, 1576 ई. हल्दी घाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध मुग़ल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। अन्त में यूद्ध अनिर्णायक रहा।
1757:- प्लासी का युद्ध
1757 में यहाँ पर हुआ था प्लासी का युद्ध, जिसे बक्सर के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला के बीच लड़ा गया था।
युद्ध का कारण था बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला की नागरिक नहीं राजनीतिक अवस्था और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापक व्यापार और अधिग्रहण की इच्छा।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के अद्वितीय प्रमुख रॉबर्ट क्लाइव ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की और नवाब सिराज-उद-दौला को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में अपने प्रभाव को मजबूत किया और उसने भारतीय सुलतानतों के साथ आगे और भी संघर्ष जारी किए।
1761 पानीपत का तृतीय युद्ध :
1761 में हुआ पानीपत का तृतीय युद्ध एक महत्वपूर्ण संघर्ष था, जिसे अब्दाली अहमद शाह दुर्रानी और मराठों के बीच लड़ा गया था। इसे "पानीपत का तृतीय युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है।
युद्ध का कारण था शहीदानी की बढ़ती बुराई, विशेषकर मराठों की खुदाई की कमी, जिसका असर भारत में शासन करने वाले अली गौद और अब्दाली अहमद शाह के बीच हुआ था।
युद्ध का परिणाम था कि मराठे हारे और अब्दाली अहमद शाह ने जीत हासिल की। इससे मराठे की सत्ता कमजोर हुई और उनका पूर्वाधिकार कम हो गया। पानीपत का तृतीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना रहा है जो उत्तर भारत में राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था।
1764:- बक्सर का युद्ध :
1764 में बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण संघर्ष था, जो कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बन्देलखंड के नवाब शुजाउद्दौला के बीच लड़ा गया था. यह युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर, बिहार में लड़ा गया था.
इस युद्ध का मुख्य कारण था ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रबंधन में कमी थी और विदेशी स्वामित्व में स्थानांतरण की आवश्यकता थी. शुजाउद्दौला नवाब थे और उन्हें बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था.
बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश सेना का कमांड कलोनेल मुंबई के हेस्टिंग्स ने लिया था. इसमें ब्रिटिश सेना को मुख्य रूप से गोलाबारी की गोलियों की उच्चतम गुणवत्ता के कारण जीत मिली. इस युद्ध के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय साम्राज्य को और बढ़ावा दिया और उन्होंने दिल्ली के साम्राज्य की ओर बढ़त बनाई.
अंग्रेजो और शुजाउद्दौला, मीर कासिम एवं शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच। अंग्रेजो की विजय हुई। अंग्रेजो को भारत वर्ष में सर्वोच्च शक्ति माना जाने लगा।
2 Comments
Nice 🙂🙂
ReplyDeleteJay shree Ram
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